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इस दौरान जिला निर्वाचन अधिकारी ने अवगत कराया कि प्रत्येक निर्वाचन स्वतंत्र, निश्पक्ष, पारदर्शी और शांतिपूर्ण तरीके से संचालित किया जाए। आयोग का यह प्रयास रहा है कि अभ्यर्थियों और राजनीतिक दलों समेत सभी हितधारकों के लिए एकसमान अवसर दिए जाने के सिद्धांत को न बिगाड़ा जाए और निर्वाचन प्रक्रिया को धन शक्ति के दुरुपयोग सहित किसी भी साधन से दूषित नहीं होने दिया जाए | निर्वाचन व्यय के लिए सहूलियत देने और इसका अनुवीक्षण करने के लिए एक सुव्यवस्थित तंत्र अपनाया जाए धन और बल के खतरे पर अंकुश लगाते हुए भारत निर्वाचन आयोग ने यह सुनिश्चित किया की आम जनता को किसी और असुविधा का सामना न करना पड़े।निर्वाचन व्यय की पहली श्रेणी विधिक व्यय है, जिसकी निर्वाचन-प्रचार के लिए कानून के अंतर्गत अनुमति दी गई है बशर्ते वह अनुमेय सीमा के भीतर हो। इसमें प्रचार अभियान से जुड़ा वह व्यय भी शामिल होगा जो सार्वजनिक बैठकों, सार्वजनिक रैलियों, पोस्टरों, बैनरों, वाहनों, प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, आदि में विज्ञापनों पर खर्च की जाती है।, निर्वाचन व्यय की दूसरी श्रेणी में उन मदों पर किए गए खर्च शामिल हैं जिनकी कानून के तहत अनुमति नहीं दी जाती है जैसे कि धन, शराब का वितरण, या निर्वाचकों को प्रभावित करने के प्रयोजन से वितरित की गई या दी गई कोई अन्य वस्तु। यह व्यय “रिश्वत” की परिभाषा के तहत आता है।
जो दंड प्रक्रिया संहिता और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (अधिनियम) दोनों के तहत अपराध है। मगर हाल के दिनों में जो व्यय सामने आ रहा है वह छद्म विज्ञापन, पेड़ न्यूज और सोशल मीडिया इत्यादि पर है। प्रणालियों को इतना अधिक सशक्त होना चाहिए कि ऐसे व्यय को दर्ज किया जाए और इसे न केवल निर्वाचन व्यय के लेख में शामिल किया जाए अपितु गलत कार्य करने वालों के विरुद्ध कानून के संगत उपबंधों के अंतर्गत कार्रवाई भी की जाएगी। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 77 (1)के अनुसार लोकसभा या राज्य विधानसभा के प्रत्येक अभ्यर्थी के लिए उनके नामांकन की तारीख से निर्वाचन के परिणाम की घोषणा की तारीख जिसमें दोनों ही तिथियां सम्मिलित है कि मध्य उनके द्वारा या उनके निर्वाचन एजेंट द्वारा उपगत या प्राधिकृत किए गए सभी व्ययो का पृथक एवं सही लिखा रखना अनिवार्य है वह इसी के धारा 77(3) के अधीन निर्धारित सीमा से अधिक वह किया जाना एक भ्रष्ट आचरण है लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से निर्वाचनों में निर्धारित व सीमा से अधिक व्यय उपगत करना या प्राधिकृत करना भ्रष्ट आचरण है।