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बांग्लादेश में ‘डेविल्स ब्रीथ’ नामक दवा से ठगी, जिसे सूंघने पर पैसा-ज़ेवर दे देते हैं लोग
ढाका की रहने वाली तहमीना बेगम (बदला हुआ नाम) कुछ दिनों पहले ठगी की एक अनूठी घटना की शिकार हुई थीं.
बाज़ार से घर लौटते समय उनके सामने अचानक एक अपरिचित युवती रास्ता घेर कर खड़ी हो गई. उसने तहमीना के शरीर से सटते हुए एक ठिकाने के बारे में जानकारी मांगी.
उसके बाद एक और युवक सामने आया. तहमीना को महज़ दो-तीन मिनट में ही पता नहीं क्या हो गया.
तहमीना बताती हैं, “यह घटना अजीब और भयानक है. वह युवक मुझसे जानना चाहता था कि इलाके़ में कोई परिचित ग़रीब या यतीम है या नहीं. वह उसकी मदद करेगा. मेरे घर के पास एक ग़रीब परिवार रहता था. इसलिए मैंने इस बारे में उस युवक से विस्तृत जानकारी मांगी. मैंने उनसे महज़ कुछ मिनट तक बात की थी. इसके बाद पता नहीं क्या हुआ. मेरा दिमाग़ ही काम नहीं कर रहा था.”
उसके बाद तहमीना ने उस अपरिचित महिला और युवक के कहने के मुताबिक़, अपने कान की बाली, गले की चेन और पास रखे कुछ हज़ार रुपए उनको सौंप दिए.
तहमीना बताती हैं, “उन लोगों ने कहा कि आंटी, आप अपने गहने और पैसे बैग में रख लें, वरना खो जाएंगे. मैंने ठीक वैसा ही किया. मेरे दिमाग़ में यह बात नहीं आई कि मैं गहनों को क्यों खोलूं, वो कैसे खो जाएंगे या बैग में क्यों रखूं. उसके बाद युवक ने मुझसे अपने साथ आने को कहा. मैं अपना बैग उस युवती को सौंप कर युवक के पीछे चलने लगी.”
कुछ देर बाद होश में आईं तहमीना
कुछ दूर चलने के बाद ही तहमीना होश में लौटीं. लेकिन तब वह युवक कहीं नज़र नहीं आ रहा था. पहले वाली जगह पर लौटने के बाद वहां वह युवती भी कहीं नज़र नहीं आई. वह उस दिन सोने की चेन, कान की बाली, हज़ारों रुपए और अपना मोबाइल गंवा कर घर लौटीं.
वह बताती हैं, “मुझे अब भी समझ में नहीं आ रहा कि कैसे क्या हो गया. उन लोगों ने मेरे साथ कुछ भी नहीं किया था. वह दोनों मेरे क़रीब खड़े थे और युवती मेरे चेहरे के सामने हाथ हिलाकर एक काग़ज़ पर लिखे किसी पते के बारे में पूछ रही थी.”
बांग्लादेश में हाल के वर्षों में कई अन्य लोग भी तहमीना बेगम की तरह ऐसे कड़वे अनुभव से गुज़रे हैं. इन घटनाओं के पीछे स्कोपोलामाइन नामक नशीली दवा को कारण बताया जा रहा है.
कहा जा रहा है कि यह दवा लिक्विड और पाउडर दोनों रूपों में मिलती है. आपराधिक मंशा से इस दवा को काग़ज़, कपड़ा, हाथ या मोबाइल की स्क्रीन पर लगाकर भी इसकी ख़ुशबू से कुछ देर के लिए किसी के भी दिमाग़ पर नियंत्रण किया जा सकता है.
लेकिन क्या सचमुच ऐसी कोई नशीली दवा है. और अगर है भी तो इस बात की पुष्टि कैसे की जा सकती है कि इसका इस्तेमाल बांग्लादेश में किया जा रहा है.
बांग्लादेश में स्कोपोलामाइन के इस्तेमाल के सुबूत क्या हैं?
सितंबर, 2023 में बांग्लादेश के नारायणगंज में एक निजी स्कूल के शिक्षक की हत्या हो गई थी. उस हत्याकांड की जांच के सिलसिले में पुलिस ने एक व्यक्ति को गिरफ़्तार किया था. बाद में ढाका से एक और व्यक्ति को गिरफ़्तार किया गया.
पुलिस ने पहली बार उनमें से एक व्यक्ति के कब्जे़ से स्कोपोलामाइन बरामद होने की बात कबूल की थी. उस व्यक्ति के कब्जे़ से बोतल में पाउडर के तौर पर भरे स्कोपोलामाइन समेत कई अन्य नशीली चीज़ें बरामद की गई थीं.
बाद में अदालत के निर्देश पर सीआईडी की लैब में जांच के बाद स्कोपोलामाइन की पुष्टि हुई थी.
नारायणगंज के पुलिस अधीक्षक ग़ुलाम मुस्तफ़ा रसेल ने बीबीसी बांग्ला को बताया कि शुरुआत में उनको इस स्कोपोलामाइन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
वह बताते हैं, “रासायनिक जांच के बाद हमको जो रिपोर्ट मिली थी उसमें स्कोपोलामाइन, पोटेशियम साइनाइड और क्लोरोफॉर्म की पुष्टि हुई है. इनमें से स्कोपोलामाइन हमारे लिए एकदम नई चीज़ थी. हमलोग इसका नाम नहीं जानते थे. यह भी नहीं पता था कि इसका इस्तेमाल कैसे और कहां-कहां किया जा सकता है. बाद में अध्ययन करने पर पता चला कि असल में कई लोग इसे डेविल्स ब्रीथ या शैतान की सांस कहते हैं.”
मुस्तफ़ा बताते हैं कि अब तक की जांच से यह बात सामने आई है कि नशीली दवा के तस्कर कोरियर या दूसरे तरीक़ों से इस नशीली दवा को देश में ले आ रहे हैं.
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धतूरे के फूल से स्कोपोलामाइन कौन बनाता है?
स्कोपोलामाइन मूल रूप से एक सिंथेटिक ड्रग है. चिकित्सा विज्ञान में दवा बनाने में इसका इस्तेमाल किया जाता है. मतली, मोशन सिकनेस और कुछ मामलों में ऑपरेशन के बाद रोगियों के लिए दवाएं बनाने में इसका इस्तेमाल किया जाता है.
लेकिन यह कोई प्राकृतिक चीज़ नहीं है. इसे प्राकृतिक चीज़ों में और कुछ सामग्री मिला कर कृत्रिम तरीके़ से स्कोपोलामाइन तैयार किया जाता है. यह लिक्विड और पाउडर दोनों रूपों में मिलता है.
इसे तैयार करने के लिए महत्वपूर्ण या मूल घटक धतूरे के फूल से मिलता है.
नारकोटिक्स कंट्रोल विभाग के मुख्य रासायनिक परीक्षक डाॅ. दुलाल कृष्ण साहा बताते हैं, “देश में एक दौर में लोगों को पागल बनाने के लिए दूध में धतूरा पीस कर पिला दिया जाता था. धतूरे का फूल एक किस्म का ज़हर है. इससे कुछ हिस्सा निकाल कर सिंथेटिक तरीके से स्कोपोलामाइन तैयार किया गया है. मेक्सिको में नशीली दवाओं का कारोबार करने वाले गिरोह इस नशीली दवा को बना कर पूरी दुनिया में फैला रहे हैं.”
स्कोपोलामाइन कब और कैसे काम करता है?
दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान खुफिया एजेंसियों की ओर से स्कोपोलामाइन के इस्तेमाल की मिसाल मिलती है. उस समय इसका इस्तेमाल लिक्विड के तौर पर इंजेक्शन के ज़रिए किया जाता था.
बांग्लादेश के बंगबंधु शेख़ मुजीब मेडिकल विश्वविद्यालय के फार्माकोलॉजी विभाग के चेयरमैन प्रोफे़सर (डा.) सैदुर रहमान कहते हैं, “दवा के तौर पर अब भी स्कोपोलामाइन का इस्तेमाल किया जाता है. यह और इसके जैसी कई दवाओं का चिकित्सा विज्ञान में इस्तेमाल किया जाता है. यह हक़ीक़त है. शुरुआत में द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान खुफिया एजेंसियां दुश्मन से पूछताछ के लिए ट्रूथ सीरम के तौर पर इसका इस्तेमाल करती थीं. यानी इस दवा का इंजेक्शन देने की स्थिति में संबंधित व्यक्ति सच बोलने लगता था. इसकी वजह यह थी कि वह अपने दिमाग़ का नियंत्रण खो बैठता था. वह दूसरे के नियंत्रण में चला जाता था और उसकी बात सुनने और मानने लगता था.”
रहमान बताते हैं, “जब आप किसी से सच उगलवाने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं तब यह ट्रूथ सीरम है. लेकिन जब आप पाउडर के रूप में किसी को इसकी खुशबू लेने पर मजबूर करते हैं तो यह ‘डेविल्स ब्रीथ’ या ‘शैतान की सांस’ बन जाता है. इसी तरह जब मतली, उल्टी या मोन सिकनेस मामलों में इसका इस्तेमाल करते हैं तो असल में यह दवा के तौर पर इस्तेमाल होती है.”
ठगी या धोखाधड़ी के मामले में मुख्य रूप से पाउडर के रूप में ही स्कोपोलामाइन का इस्तेमाल किया जा रहा है. विज़िटिंग कार्ड, काग़ज़, कपड़ा या मोबाइल के स्क्रीन पर इसे लगा कर बेहद चालाकी से इसे शिकार की नाक के सामने ले आया जाता है.
नारकोटिक्स कंट्रोल विभाग के मुख्य रासायनिक परीक्षक डॉ. दुलाल कृष्ण साहा बताते हैं, “यह दवा किसी इंसान की नाक से चार से छह इंच के फ़ासले पर आने पर उसकी सांस के दायरे में आती है यानी किसी को इसका शिकार बनाने के लिए दवा को उसकी नाक से चार से छह इंच की दूरी तक रखना ज़रूरी है.”
“सांस के ज़रिए भीतर जाने के 10 मिनट के भीतर या उससे पहले ही यह अपना असर दिखाने लगती है. उसके बाद स्मृति और मस्तिष्क सचेत रूप से काम नहीं कर सकते. इसके असर के बाद स्वाभाविक होने में किसी को एक घंटा लगता है तो कुछ लोग तीन-चार घंटे बाद भी स्वाभाविक स्थिति में नहीं लौट सकते.”
सुरक्षा एजेंसियां क्या कर रही हैं?
बांग्लादेश में शुरुआत में राजधानी ढाका में ही इस नशीली दवा के इस्तेमाल के ज़रिए ठगी की शिकायत मिली थी. लेकिन अब ढाका से बाहर राज्य के दूसरे ज़िलों में भी ऐसी शिकायतें मिल रही हैं.
हालांकि पुलिस के पास ऐसी घटनाओं का कोई ठोस आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. एक बड़ा सवाल यह है कि नशीली दवाओं के तस्कर कैसे सुरक्षा एजेंसियों की आंखों में धूल झोंक कर स्कोपोलामाइन को देश में ले आ रहे हैं?
नारायणगंज की घटना के बाद खुफिया एजेंसियों को जानकारी मिली थी कि स्कोपोलामाइन की बिक्री ऑनलाइन की जा रही है. पुलिस ने बताया कि पहले जिन दो लोगों को गिरफ्तार किया गया था वह दोनों इस दवा की ऑनलाइन बिक्री से जुड़े हैं. यह नशीली दवा मूल रूप से से देश के बाहर से यहां पहुंच रही है.
इस दवा को देश में ले आने के लिए कोरियर सर्विस का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है. पुलिस और सुरक्षा एजेंसियां इस बात की भी जांच कर रही हैं कि कोई दवा के लिए कच्चे माल के तौर पर या क़ानूनी खामियों का फायदा उठा कर तो स्कोपोलामाइन यहां नहीं ले आ रहा है.
इस बारे में एक सवाल पर पुलिस मुख्यालय के एआईजी इनामुल हक सागर का कहना था, “इस अपराध से जुड़े लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है. हमने अब तक कई लोगों को गिरफ्तार किया है. इससे पहले नारायणगंज में भी गिरफ्तारियां हुई हैं. हम फिलहाल उनसे मिली जानकारियों का विश्लेषण कर रहे हैं. यह पता लगाया जा रहा है कि उनके साथ इस कारोबार में और कौन-कौन शामिल हैं. उसके बाद उन सबको भी गिरफ्तार किया जाएगा.”
लेकिन सबसे ज़्यादा डर इस बात का है कि इस दौरान स्कोपोलामाइन के इस्तेमाल के ज़रिए ठगी की शिकायतें लगातार मिल रही हैं और कई लोगों को अपनी जमा-पूंजी से हाथ धोना पड़ रहा है।