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राजस्थान: एक जासूस अपने देश के लिए अपने परिवार, पहचान, देश, जिंदगी, नाम और सबकुछ दाव पर लगा कर दुनिया के किसी भी कोने में अपनी जान खतरे में डाल देता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे जासूस की कहानी जिन्होंने देश के लिए अदम्य साहस और त्याग का परिचय दिया।
वह शख्स जिनको हम “ब्लैक टाइगर” के नाम से जानते हैं, “ब्लैक टाइगर” उस रॉ एजेंट का नाम है जिसके जासूसी मिशन पर जाने से पहले देश और दुनिया उन्हें रविंद्र कौशिक के नाम से जानती थी। रविंद्र कौशिक की कहानी किसी बॉलीवुड फिल्म से कम नहीं है. एक युवा भारतीय का पाकिस्तानी सेना में भर्ती होने से मेजर बनने का सफर, वो भी दुश्मन देश में मुल्क के दुश्मनों के बीच रहकर जासूसी करना, ये सब सुनने में तो रोमांचक लगता है, लेकिन असलियत में ये बेहद खतरनाक और असंभव काम है.
रविंद्र कौशिक का जन्म 11 अप्रैल 1952 को राजस्थान के श्री गंगानगर जिले में हुआ था. उनका बचपन काफी साधारण था. वो पढ़ाई में बहुत होशियार थे और साथ ही उन्हें अभिनय का भी शौक था. कॉलेज के दिनों में उनकी प्रतिभा को रॉ के अधिकारियों ने पहचाना। थिएटर के दौरान उनकी एक्टिंग से रॉ के सदस्य क्यों प्रभावित हुए यह कहानी भी काफी दिलचस्प है. दरअसल, उनके एक मोनो-एक्ट जिसमें वह एक इंडियन आर्मी अफसर का रोल प्ले कर रहे थे, जो चीनी सेना द्वारा पकड़े जाने के बाद उन्हें भारत से जुड़ी अहम् जानकारी देने से इनकार कर देता है.’ रॉ अधिकारी उनकी परफॉर्मेंस से काफी खुश हुए और वहां से शुरू हुई उनके जासूस बनने की कहानी. रविंद्र की शक्ल और कद-काठी पाकिस्तानी लोगों से काफी मिलती थी और उनकी अभिनय क्षमता देखकर रॉ को लगा कि वो पाकिस्तान में जासूसी के लिए लाजवाब विकल्प हैं.
इसके साथ ही रविंद्र भी देश के लिए कुछ कर गुजरने के लिए हसरत रखते थे. उनकी हाँ के बाद उन्हें RAW ने उन्हें अपने साथ शामिल कर जासूस बनाने की कड़ी ट्रेनिंग शुरू की. दो साल तक चली इस ट्रेनिंग में उन्होंने उर्दू, पंजाबी, अरबी भाषाओं में महारत हासिल की. उन्हें इस्लामिक धर्म और पाकिस्तानी संस्कृति की भी बारीकी से जानकारी दी गई. इसके बाद रविंद्र की एक पाकिस्तानी नागरिक के रूप में नई पहचान बनाई गई जिसके तहत उन्हें नबी अहमद शाकिर के नाम से पाकिस्तान भेजा गया।
1975 में मात्र 23 साल की उम्र में रविंद्र कौशिक पाकिस्तान में दाखिल हुए और उनका मिशन था पाकिस्तानी सेना में शामिल होकर वहां से भारत के लिए महत्वपूर्ण जानकारियां हासिल करना. अपनी मेहनत और कुशाग्र बुद्धि से रविंद्र पाकिस्तानी सेना की परीक्षाओं में पास हुए और धीरे-धीरे सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए. कुछ ही सालों में वो पाकिस्तानी सेना में मेजर भी बन गए. दुश्मनों के बीच रह कर एक भारतीय का पाकिस्तानी सेना में मेजर बन कर रहना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि थी. और उनकी इस कामयाबी की मुरीद हो कर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें ‘ब्लैक टाइगर’ का नाम दिया।
मेजर के पद पर पहुंचने के बाद रविंद्र कौशिक को पाकिस्तानी सेना के अहम दस्तावेजों और युद्ध रणनीतियों तक पहुंच मिल गई. वह गुप्त रूप से भारत को पाकिस्तान की सैन्य तैयारियों, आतंकी गतिविधियों और युद्ध अभ्यासों की महत्वपूर्ण जानकारी भेजते रहे. पाकिस्तानी सेना में रहते हुए रविंद्र कौशिक को हर पल अपनी असली पहचान उजगार होने का खतरा बना रहता था. फिर रविंद्र कौशिक ने पाकिस्तान में एक स्थानीय लड़की से निकाह कर, घर बसाया और एक बेटी के पिता बन गए। जिसके चलते उनकी असली पहचान उजागर होने का खतरा काफी हद तक कम हो गया।। साल 1979 से 1983 तक उन्होंने पाकिस्तान से अहम जानकरियां भेजीं, जिसके लिए उन्हें पाकिस्तानी अफसरों की नजरों में खुद को एक सच्चे पाकिस्तानी सैनिक के रूप में साबित किया. अगर गलती से भी उनकी असली पहचान उजागर हो जाती तो उनका खेल खत्म था।
एक बार रविंद्र का बचपन का फोटो किसी पाकिस्तानी अख़बार में छपा, जिससे उन्हें अपना कवर ब्लो होने का खतरा महसूस हुआ। तब उन्होंने भारत में अपनी मां के बीमार होने का बहाना कर अपने अधिकारियों से जल्दी भारत जाने की अर्जी लगाई। उनकी सूझ बूझ काम आई और उन्हें जाने की इजाजत और छुट्टी मिल गई. इस दौरान उन्होंने भारत आकर रॉ के अधिकारियों से मुलाकात की और पाकिस्तान के बहुत सारे सीक्रेट्स और मिशन की जानकारी साँझा की।
रविंद्र कौशिक ने अपने करीब नौ साल के जासूसी कार्यकाल में भारत को पाकिस्तान के कई खतरनाक मंसूबों के बारे में चेताया. उनकी जानकरी की बदौलत भारत पाकिस्तान के कई घातक मंसूबों को नाकाम करने में सफल रहा. रविन्द्र कौशिक द्वारा दी गई की गुप्त जानकारी के चलते भारत पाकिस्तान से हमेशा एक कदम आगे रहा। कई अवसरों पर पाकिस्तान ने भारत की सीमाओं के पार युद्ध छेड़ना चाहा , लेकिन रविन्द्र कौशिक द्वारा सही समय पर दिए गए सीक्रेट का उपयोग पाकिस्तान के इरादों को नाकाम किया ।
सितम्बर 1983 में, भारतीय खुफिया एजेंसियों ने ब्लैक टाइगर के साथ संपर्क साधने के लिए एक एजेंट, Inyat Masiha, को पाकिस्तान भेजा । लेकिन वो एजेंट को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों के हाथों पकड़ा गया, जिस कारण रविंदर कौशिक की असली पहचान पाकिस्तानी सेना को पता चली। ब्लैक टाइगर पर सियालकोट की सबसे सुरक्षित जेल में दो साल तक अत्याचार किया गया। वर्ष 1985 में उन्हें सजा-ए-मौत की सजा सुनाई गई थी। जिसे बाद में पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट द्वारा आजीवन कारावास में बदल दिया गया। उन्हें 16 साल तक सियालकोट, कोट लखपत और मियांवाली जेल सहित विभिन्न जेलों में रखा गया । इसी बीच पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों के चलते कौशिक को दमा और टीबी की शिकायत हो गई ।
एक दिन चुपके से वे भारत में अपने परिवार के लिए पत्र भेजने में कामयाब रहे। जिसमे उन्होंने अपने खराब स्वास्थ्य और पाकिस्तान की जेलों में अपने ऊपर होने वाली टॉर्चर के बारे में लिखा, लेकिन भारत सरकार या RAW ने उनकी खोज नहीं की। नवंबर 2001 को ब्लैक टाइगर ने पाकिस्तान की मुल्तान सेंट्रल जेल में फेफड़े, तपेदिक और दिल की बीमारी के चलते दम तोड़ दिया। और उन्हें मुल्तान जेल के पीछे दफनाया गया। रवींद्र के परिवार ने बताया की वर्ष 2012 में प्रदर्शित मशहूर बॉलीवुड फिल्म “एक था टाइगर” की शीर्षक लाइन रवींद्र के जीवन पर आधारित थी।