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उत्तर प्रदेश: करहल विधानसभा में उपचुनाव काफी संघर्षपूर्ण होता जा रहा है। इस सीट पर दो यादव परिवारों के बीच लड़ाई और उप-जातियों के बीच गणित देखने को मिल रहा है। जो अखिलेश यादव की धड़कन बड़ा सकता है।
इस साल की शुरुआत में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के बाद यह सीट खाली हो गई थी । मैनपुरी से पूर्व सांसद उनके भतीजे तेज प्रताप यादव को इस बार करहल से मैदान में उतारा गया है। विधानसभा सीट पर 20 नवंबर को मतदान होगा।
तेज प्रताप के मुकाबले में भाजपा ने अनुजेश यादव को मैदान में उतारा है। अनुजेश यादव, मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई अभय राम यादव के दामाद हैं। अनुजेश ने इससे पहले 2007 में मैनपुरी जिले की घिरोर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे।
उपजाति संख्या में सपा प्रत्याशी से बीजेपी के अनुजेश भारी
उपजाति संख्या में सपा प्रत्याशी से बीजेपी के अनुजेश भारी
करहल विधानसभा में यादवों की संख्या करीब 1.25 लाख है। जो अन्य जातियों से सबसे ज्यादा है। लेकिन यहां पर अब जो तेज प्रताप और अनुजेश यादव के बीच पेंच फंस रहा है। उसने अखिलेश यादव समेत पूरी सपा की हार्ट बीट बड़ा दी है। क्योंकि सपा प्रत्याशी तेज प्रताप जहां कमेरिया उपजाति या गोत्र से आते हैं तो वहीं बीजेपी प्रत्याशी अनुजेश यादव घोषी उपजाति से हैं। ऐसे में करहल की लड़ाई काफी दिलचस्प देखने को मिल सकती है। ऐसे में उपजाति के आंकड़े काफी निर्णायक साबित हो सकते हैं। क्योंकि घोसी उपजाति इस सीट पर यादव आबादी का करीब 65% है, जबकि कमेरिया उपजाति करीब 35% हैं।
पिछले दो दशकों में सपा ने यह सीट सिर्फ एक बार जीती थी और उसे उम्मीद थी कि यह उपचुनाव आसान होगा, लेकिन अनुजेश के मैदान में उतरने से समाजवादी पार्टी के लिए स्थिति काफी कठिन हो गई है।
सपा के लिए नाक का सवाल बनी करहल सीट
सपा के लिए नाक का सवाल बनी करहल सीट
यही वजह करहल सीट अखिलेश यादव की नाक का सवाल बन गया है और पूरा यादव परिवार इस सीट पर आक्रामक तरीके से प्रचार कर रहा है। मैनपुरी से मौजूदा सांसद डिंपल यादव, जो अखिलेश की पत्नी हैं, और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव अपने परिवार के गढ़ को बचाने के लिए करहल में डेरा डाले हुए हैं।
हालांकि, भाजपा ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और अन्य केंद्रीय मंत्री अनुजेश के लिए प्रचार कर रहे हैं। जबकि सपा अपने प्रचार अभियान में भाजपा पर ‘परिवारों के भीतर विभाजन पैदा करने’ का आरोप लगा रही है। भाजपा मुख्य रूप से घोसी यादवों तक पहुंच रही है और उन्हें बता रही है कि उन पर संख्यात्मक रूप से अधिक मजबूत कमरिया यादवों का प्रभुत्व है।
भाजपा प्रत्याशी अनुजेश क्षेत्र में विकास परियोजनाओं की भी बात कर रहे हैं और कह रहे हैं कि उनका मुद्दा ‘पार्टी’ और ‘विचारधारा’ के लिए है, न कि ‘परिवार’ के लिए।
बसपा ने बढ़ाईं सपा की मुश्किलें
बसपा ने बढ़ाईं सपा की मुश्किलें
सपा की मुश्किलें बढ़ाने के लिए बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने शाक्य समुदाय से अवनीश शाक्य को मैदान में उतारा है, जो इस सीट पर यादवों के बाद सबसे बड़ा समुदाय है। शाक्य समुदाय परंपरागत रूप से सपा को वोट देता रहा है, लेकिन बसपा के उम्मीदवार के आने से उनके वोट भी बंटने की संभावना है। सपा नेता भी इस चुनौती को स्वीकार करते हैं और कहते हैं कि परिणाम “करीब-करीब” हो सकता है। लेकिन वे यह भी कहते हैं कि वे चुनाव जीतेंगे।
मैनपुरी से सपा के अध्यक्ष आलोक शाक्य ने कहा कि करहल सपा की परंपरागत सीट है और किसी भी विपरीत परिस्थिति में सपा ने कभी उसका साथ नहीं छोड़ा है। इस सीट से पहले भी कई यादव उम्मीदवार मैदान में उतरे हैं, लेकिन वे मतदाताओं का ध्यान नहीं भटका पाए। हम घर-घर जाकर लोगों से संपर्क कर रहे हैं। हमें पूरा भरोसा है कि जनता इसे देखेगी और हम इस सीट पर बड़े अंतर से जीतेंगे।
करहल में अधिकतर समय सपा और भाजपा के बीच मुकाबला देखने को मिलता है तथा भाजपा ने अपने चुनावी इतिहास में एक बार को छोड़कर शेष सभी बार यह सीट जीती है। 2002 में मुलायम सिंह यादव के प्रतिद्वंद्वी सोबरन सिंह यादव ने इस सीट से चुनाव लड़ा और सपा के अनिल कुमार यादव को लगभग 900 मतों के मामूली अंतर से हराया था।