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कार्तिक को दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलना बहुत पसंद है, जो पिछले कुछ समय से बिल्कुल बंद-सा था। धीरे-धीरे उसने फिर से अपनी सोसायटी के बच्चों के साथ खेलना, साइक्लिंग आदि करना शुरू किया था। ग्रुप के कुछ बच्चे तो मास्क पहनने एवं सैनिटाइजेशन को लेकर काफी सजग थे। लेकिन कुछ थोड़े लापरवाह भी थे। ऐसे में एक दिन कार्तिक ने मम्मा से पेट दर्द की शिकायत की। मां ने इस उम्मीद से घरेलू इलाज किया कि वह ठीक हो जाएगा, जबकि अगले ही दिन से कार्तिक को तेज बुखार आने लगा। दो-तीन बीतने पर दसवीं में पढ़ने वाली बड़ी बहन इशिता को भी ऐसी ही परेशानी हुई। यहां तक कि उनकी मां तक अछूती नहीं रहीं। तत्काल सभी का टेस्ट कराया गया।
सभी की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। इसके बाद सबने घर में ही खुद को आइसोलेट कर लिया। इशिता बताती हैं, ‘पहली बार ऐसा हुआ था कि हम बुखार से तप रहे थे। शरीर में दर्द हो रहा था। लेकिन सिर पर ठंडी पट्टी रखने के लिए मम्मी नहीं थीं और न ही हम उनकी गोद में सिर रखकर सुकून पा सकते थे। करीब जाने का तो सवाल ही नहीं था। बावजूद इसके जिस तरह उन्होंने हमारे खाने-पीने का ध्यान रखा, समय से उठने और एक्सरसाइज आदि करने के लिए प्रेरित किया, खुद दर्द में रहते हुए हमारी देखभाल की, हमें मानसिक रूप से मजबूत बने रहने के लिए प्रोत्साहित किया, वह कोई और नहीं कर सकता था। इसी ने हमें कोरोना से लड़ने का साहस दिया और हम सब जल्दी स्वस्थ हो पाए।’
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मां से सीखा धैर्य रखना: लखनऊ की 12 वर्षीय अदित्री एवं उनकी बड़ी बहन आद्या रस्तोगी की हिम्मत का भी जवाब नहीं रहा। कोरोना रोधी टीके की पहली डोज लेने के बाद ही उनकी मां की तबीयत बिगड़ गई। कुछ समय बाद जब टेस्ट कराए गए, तो मां की रिपोर्ट पॉजिटिव आई और उन दोनों की निगेटिव। पिता दूसरे शहर में थे और घर में सिर्फ वे तीन सदस्य ही थे।
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बताती हैं आद्या, ‘पहले तो हम घबरा गए थे कि कैसे संभलेगा सब। मम्मी हमें लेकर कुछ ज्यादा परेशान थीं। लेकिन फिर सबने मिलकर इस मुश्किल घड़ी का सामना करने का फैसला किया। पापा दूसरे शहर में थे, लेकिन फोन पर वह हमेशा जुड़े रहे और हमें गाइड करते रहे। हम दोनों बहनों को किचन में कुछ-कुछ बनाने का शौक रहा है, तो खाने-पीने की दिक्कत नहीं हुई।’ आद्या की मानें, तो माता-पिता उन्हें हमेशा से आत्मनिर्भर बनने की सीख देते रहे हैं। इससे हमारे भीतर जिम्मेदारी का एहसास आया। वह कहती हैं, ‘मेरी मां प्रोफेसर हैं। उन्हें घर के अलावा कॉलेज के सैकड़ों बच्चों को भी संभालना होता है। वह बेहद धैर्य के साथ सभी को सुनती हैं। उनकी यह खासियत हमें काफी पसंद है।’