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पितृ पक्ष के 15 दिन पूर्णरूप से पितरों को श्रद्धांजलि देने के लिए समर्पित होते हैं. इस दौरान लोग अपने पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान आदि करते हैं. कई बार मन में सवाल आता है कि अगर पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध नहीं किया जाए, तो क्या पितर अपने वंशजों को श्राप देते हैं?
आइए आपको बताते हैं इस बारे में हिंदू धर्म की मान्यताएं.
धार्मिक मान्यकातों के अनुसार, हर साल पितृ पक्ष के दौरान हमारे पूर्वज 15 दिनों के लिए धरती पर आते हैं और अपने वंशजों से आशा करते हैं कि उनका श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान आदि किया जाए. ऐसे में जब पितरों का श्राद्ध नहीं होता तो वे बहुत दुखी होते हैं और श्राप देकर वापस अपने लोक लौट जाते हैं।
इसी वजह से हर साल पितृ पक्ष के दौरान पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्राद्ध किया जाता है. मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, जिस भी कुल में श्राद्ध नहीं किया जाता है, उसमें दीर्घायु, निरोग और वीर संतान जन्म नहीं लेती और न ही परिवार में कभी मंगल होता है।