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कर्मफल का अकाट्य सिद्धांत :-
पूर्व जन्मों के कर्मों से ही हमें इस जन्म में माता – पिता, भाई – बहन, पति – पत्नि, प्रेमी – प्रेमिका, मित्र – शत्रु, सगे – सम्बन्धी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते नाते हैं, सब मिलते हैं, क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है।
सन्तान के रूप में कौन आता है?
सन्तान के रूप में हमारा कोई पूर्वजन्म का सम्बन्धी ही आकर जन्म लेता है, जिसे शास्त्रों में चार प्रकार से बताया गया है :–
ऋणानुबन्ध :- पूर्व जन्म का कोई ऐसा जीव जिससे हमने ऋण लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धन नष्ट किया हो, वह हमारे घर में सन्तान बनकर जन्म लेगा और हमारा धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा, जब तक उसका हिसाब पूरा नहीं हो जायेगा।
शत्रु पुत्र :- पूर्व जन्म का कोई दुश्मन हमसे बदला लेने के लिये हमारे घर में सन्तान बनकर आयेगा और बड़ा होने पर माता – पिता से मारपीट, झगड़ा या उन्हें सारी जिन्दगी किसी न किसी प्रकार से सताता ही रहेगा। हमेशा कड़वा बोलकर उनकी बेइज्जती करेगा व उन्हें दुःखी रखकर वह खुश होगा।
उदासीन पुत्र :- इस प्रकार की सन्तान न तो माता – पिता की सेवा करती है और न ही कोई सुख देती है। बस, उनको उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ देती है, विवाह होने पर यह माता – पिता से अलग हो जाते हैं।
सेवक पुत्र :- पूर्वजन्म में यदि हमने किसी की खूब सेवा की है तो वह अपनी की हुई सेवा का ऋण उतारने के लिए हमारा पुत्र या पुत्री बनकर आता है और सेवा करता है। जो बोया है, वही तो काटेंगे। अपने माँ – बाप की सेवा की है तो ही हमारी औलाद बुढ़ापे में हमारी सेवा करेगी, वर्ना कोई पानी पिलाने वाला भी पास नहीं होगा।
हम यह ना समझें कि यह सब बातें केवल मनुष्य पर ही लागू होती हैं, इन चारों में कोई सा भी जीव आ सकता है । जैसे हमने किसी गाय की निःस्वार्थ भाव से सेवा की है तो वह भी पुत्र या पुत्री बनकर आ सकती है। यदि हमने गाय को स्वार्थ वश पालकर दूध बन्द होते ही घर से निकाल दिया है तो वह ऋणानुबन्ध पुत्र या पुत्री बनकर जन्म लेगी। यदि हमने किसी निरपराध जीव को सताया है तो वह हमारे जीवन में शत्रु बनकर आयेगा और हमसे बदला लेगा।
अतः जीवन में कभी भी किसी का बुरा नहीं करना चाहिए, क्योंकि प्रकृति का नियम है कि हम जो भी करेंगे, उसे वह हमें इस जन्म में या अगले जन्म में सौ गुना वापिस करके देगी। यदि हमने किसी को एक रुपया दिया है तो समझना चाहिए कि हमारे खाते में सौ रुपये जमा हो गये हैं और यदि हमने किसी का एक रुपया छीना है तो समझना चाहिए कि हमारी जमा राशि में से सौ रुपये निकल गये।
यह विचारणीय है कि हम कौन सा धन साथ लेकर आये थे और कितना साथ लेकर जायेंगे? जो चले गये, वो कितना सोना – चाँदी साथ ले गये ? मरने पर जो सोना – चाँदी, धन – दौलत बैंक में पड़ा रह गया, समझना चाहिए कि वह व्यर्थ ही पड़ा रह जायेगा। सन्तान अगर अच्छी और लायक है तो उसके लिए कुछ भी छोड़कर जाने की जरूरत नहीं है, वह खुद ही खा – कमा लेगी और यदि सन्तान बिगड़ी या नालायक है तो उसके लिए जितना मर्जी धन छोड़कर जायेंगे, वह उसे चंद दिनों में सब बरबाद करके सड़क पर ही आ जायेगा।
अतः समय रहते दुखियारों के दुःख दूर करने के लिए पीड़ा निवारण के सेवापरक कोई न कोई कार्य अवश्य संचालित करके सत्कर्मों की ऐसी गठरी बांध लें, जो हमारे साथ जा सके।
धन धरा के बीच में,
सब कुछ धरा रह जायेगा।
पशु बंधे रह जायेंगे,
जब कूच का दिन आयेगा।
कौड़ी कौड़ी जोड़कर,
जोड़े लाख करोड़।
चलती बेर न कुछ मिला,
लई लंगोटी छोड़।
प्रस्तुति- जितेन्द्र रघुवंशी





