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पहले के जमाने में लाहौर में स्थित हीरा मंडी शहर शाही मोहल्ला के नाम से मशहूर था हालांकि, पश्चिमी देशों में ऐसे इलाके को रेड लाइट डिस्ट्रिक्ट यानी लाल बत्ती कहा जाता है. मुग़ल दौर में हीरा मंडी रक़्स और मौसीक़ी के लिए मशहूर था।
ये शहर के तवाइफ़ सक़ाफ़त का मरकज़ था. रईस लोग बस्ती तफ़रीह और मौसीक़ी के लिए यहां जाते थे. इन्ही तवायफों की कहानी पर बॉलीवुड के दिग्गज फिल्मकार संजय लीला भंसाली एक वेब सीरीज लेकर आए जो 1 मई को ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज कर दिया गया है.
इस फिल्म में एक चीज ने बेहद ध्यान आकर्षित किया है जो है नथ उतराई. अब नथ उतराई है क्या और इसका तवायफ बनने से क्या कनेक्शन है तो चलिए इस बारे में जानते हैं साथ ही ये भी जानते हैं कि एक आम लड़की को तवायफ बनने के लिए क्या-क्या रस्में निभानी पड़ती है.
हीरा मंडी एक ऐसा शहर है जहां तवायफ रानी की तरह रहती थी. किसी जमाने में ये जगहे अपनो कोठों और महंगी तवायफों के लिए जाना जाता था. इस जगह राजा महाराजा, नवाब और रईस मनोरंजन के लिए आते थे. पहले के जमाने में कोठे से ही सिंगर और डांसर निकलती थीं. जो भी लड़की कोठे पर जाती थी उसे एक तय ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता था. जब लड़की छह साल की हो जाती थी से नाचने गाने की तालीम दी जाती थी. घंटो तक रियाज होता था. कहने का अर्थ ये है कि अगर हम कोठों को सिर्फ जिस्मफरोशी से जोड़े तो ये गलत होगा.
एक लड़की कैसे बनती है तवायफ
अवध के कोठों का इतिहास काफी पुराना है और उतना ही पुराना यहां का रिवाज भी है. इस कोठे के नियम के अनुसार किसी लड़की को तवायफ बनने के लिए कई सारी रस्में से होकर गुजरना पड़ता था जिसमें से 3 रस्म बेहद खास थे. पहला अंगिया दूसरे मिस्सी और तीसरा नथ उतराई. आज हम आपको नथ उतराई रस्म के बारे में बताने जा रहे हैं जिस रस्म के बिना एक लड़की तवायफ नहीं बन सकती है. तो चलिए जानते हैं.
क्या है ‘नथ उतराई’
कोई भी लड़की जब कोठे पर आती थी तो उसे तवायफ बनना ही पड़ता है चाहें वो किसी अच्छे खानदान की ही क्यों न हो. इस दौरान लड़कियों को कई रस्में निभानी पड़ती है साथ ही गायिकी, अदाए और डांस भी सीखना बहुत जरूरी होता है. इन्ही अदाओं के बल पर तवायफें रईसो से खूब पैसे बटौरती थी. अब बात करें नथ उतराई की तो ये रस्म एक त्योंहार की तरह मनाया जाता है. इस रस्म के दौरान लड़की को दुलहन की तरह सजाया जाता है. लड़की को नाक में बाएं तरफ एक बड़ी सी नथ पहनती थी. ये नथ उसके कौमार्य का प्रतीक होती थी. नथ उतराई के रस्म में राज महराजा, नावाब, रईस महफिल में आते थे और जो सबसे ज्यादा बोली लगाते थे उसके साथ लड़की अपनी पहली रात बिताती थी. इस रात के बाद से लडकी कभी नथ नहीं पहनती और वह एक तवायफ बन जाती थी.