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हनुमान जयंती और नरक चतुर्दशी आज 2025: आज जब आप सुबह उठे होंगे, तो हवा में कुछ खास महसूस हुआ होगा. यह सिर्फ दिवाली के आने की आहट नहीं है, बल्कि आज आकाश में ग्रहों और नक्षत्रों ने एक ऐसा अद्भुत संयोग बनाया है जो सालों में एक बार होता है।
आज, अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व, नरक चतुर्दशी और भक्ति, बल और सेवा के महापर्व, हनुमान जयंती, एक ही दिन, एक ही तिथि पर मनाए जा रहे हैं. यह एक ऐसा दुर्लभ और शक्तिशाली संगम है, जहां बाहरी अंधकार को मिटाने की ऊर्जा और आंतरिक शक्ति को जगाने की प्रेरणा एक साथ मिल रही है.
यह कोई साधारण दिन नहीं है. यह एक आध्यात्मिक अवसर है. एक तरफ हम भगवान कृष्ण की उस महान विजय का उत्सव मनाएंगे, जिसमें उन्होंने नरकासुर का वध कर 16,100 कन्याओं को मुक्त कराया था, और दूसरी तरफ हम उस पवनपुत्र हनुमान का जन्मोत्सव मनाएंगे जो भक्ति और शक्ति के सबसे बड़े प्रतीक हैं. यह दिन हमें सिखाता है कि बाहरी दुनिया की साफ-सफाई जितनी जरूरी है, उतनी ही जरूरी मन के भीतर की शुद्धि और मजबूती भी है. लेकिन इसका असली अर्थ क्या है? हम इन दोनों बड़े त्योहारों को एक साथ कैसे मना सकते हैं? और इस दुर्लभ दिन पर हम ईश्वर की दोगुनी कृपा कैसे प्राप्त कर सकते हैं? आइए, आज के इस महासंयोग के हर पहलू को समझते हैं और जानते हैं कि इस दिन को कैसे यादगार और फलदायी बनाया जाए.
अंधकार पर प्रकाश की विजय – नरक चतुर्दशी का महत्व
नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली, रूप चौदस या काली चौदस के नाम से भी जाना जाता है, दिवाली के पांच दिवसीय उत्सव का दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है. यह केवल दीये जलाने का दिन नहीं है, बल्कि यह अपने भीतर और बाहर के हर तरह के ‘नरक’ यानी अंधकार, गंदगी और नकारात्मकता को समाप्त करने का प्रतीक है. इस दिन के साथ कई गहरी पौराणिक कथाएं और परंपराएं जुड़ी हुई हैं.
नरकासुर वध की कथा
प्राचीन काल में प्रागज्योतिषपुर नामक राज्य का एक असुर राजा था, जिसका नाम था नरकासुर. उसे भूदेवी (पृथ्वी माता) का पुत्र माना जाता था, लेकिन अपनी शक्तियों के अहंकार में वह अत्यंत क्रूर और अधर्मी बन गया था. उसने अपनी आसुरी शक्तियों से तीनों लोकों में आतंक मचा रखा था. उसने न केवल देवताओं को पराजित कर इंद्र की माता अदिति के कुंडल छीन लिए, बल्कि पृथ्वी के कई राजाओं को हराकर उनकी 16,100 राजकुमारियों को बंदी बना लिया था.
जब नरकासुर का अत्याचार चरम पर पहुंच गया, तो सभी देवता और ऋषि-मुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए. नरकासुर को यह वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु केवल उसकी माता के हाथों ही हो सकती है. भगवान कृष्ण यह रहस्य जानते थे, और उनकी पत्नी सत्यभामा, भूदेवी का ही अवतार थीं. भगवान कृष्ण ने सत्यभामा को अपना सारथी बनाकर नरकासुर पर आक्रमण कर दिया. दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ. जब कृष्ण ने नरकासुर को लगभग पराजित कर दिया, तो उन्होंने सत्यभामा को उसे अंतिम रूप से मारने का अवसर दिया. इस प्रकार, अपनी ही माँ के अवतार के हाथों नरकासुर का वध हुआ और उसके अत्याचार का अंत हुआ. यह विजय कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को सूर्योदय से ठीक पहले हुई थी. भगवान कृष्ण ने सभी 16,100 राजकुमारियों को मुक्त कराया और उन्हें सामाजिक सम्मान दिलाया. इसी विजय की खुशी में इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है.
अभ्यंग स्नान: तन और मन की शुद्धि
नरकासुर के साथ हुए युद्ध के बाद भगवान कृष्ण का शरीर रक्त और धूल से सन गया था. उस अशुद्धि को दूर करने के लिए उन्होंने तेल और उबटन लगाकर स्नान किया था. तभी से इस दिन सूर्योदय से पहले अभ्यंग स्नान करने की परंपरा शुरू हुई. यह सिर्फ एक साधारण स्नान नहीं है, बल्कि एक शक्तिशाली आयुर्वेदिक और आध्यात्मिक प्रक्रिया है.
यह स्नान ब्रह्म मुहूर्त में, यानी सूर्योदय से पहले किया जाता है. इसमें पूरे शरीर पर तिल के तेल की मालिश की जाती है और फिर बेसन, हल्दी, चंदन, गुलाब जल और विभिन्न जड़ी-बूटियों से बने ‘उबटन’ का लेप लगाया जाता है. कुछ देर बाद इस लेप को रगड़कर हटा दिया जाता है और फिर गर्म पानी से स्नान किया जाता है. वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो यह प्रक्रिया शरीर के रोमछिद्रों को खोलकर विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालती है, रक्त संचार को बेहतर बनाती है और त्वचा में एक नई चमक लाती है. आध्यात्मिक रूप से, यह स्नान केवल शरीर की गंदगी ही नहीं, बल्कि मन की नकारात्मकता, आलस्य और दरिद्रता रूपी ‘नरक’ को भी साफ करता है. यह हमें दिवाली की सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए तैयार करता है.
यम का दीया: अकाल मृत्यु से रक्षा का विधान
नरक चतुर्दशी की एक बहुत ही अनूठी और महत्वपूर्ण परंपरा है यमराज, यानी मृत्यु के देवता के लिए दीपक जलाना. यह हिंदू धर्म के उन गिने-चुने अवसरों में से एक है जब मृत्यु के देवता की पूजा की जाती है, वह भी डर से नहीं, बल्कि सम्मान के साथ. इस दिन शाम के समय घर के मुख्य द्वार के बाहर, दक्षिण दिशा की ओर मुख करके एक पुराना चौमुखी (चार बत्तियों वाला) दीपक जलाया जाता है.
इस दीपक में सरसों का तेल डाला जाता है और इसमें एक सिक्का भी रखा जाता है. परिवार के सभी सदस्य इस दीपक को प्रणाम करते हैं और यमराज से प्रार्थना करते हैं कि वे परिवार को अकाल मृत्यु (असमय या आकस्मिक मृत्यु) के भय से मुक्त रखें. यह परंपरा एक गहरे दार्शनिक सत्य को दर्शाती है. आमतौर पर हम प्रकाश का उपयोग अंधकार या बुरी शक्तियों को भगाने के लिए करते हैं. लेकिन यहां, हम प्रकाश का उपयोग मृत्यु के देवता का स्वागत और सम्मान करने के लिए कर रहे हैं. यह मृत्यु के प्रति भय को स्वीकार्यता और सम्मान में बदलने का एक प्रयास है. हम यमराज से भाग नहीं रहे, बल्कि उनसे कृपा मांग रहे हैं कि वे हमें हमारा पूरा जीवन जीने दें और अप्राकृतिक अंत से हमारी रक्षा करें.
भक्ति और शक्ति के प्रतीक – पवनपुत्र हनुमान का जन्मोत्सव
आज के दिन का दूसरा बड़ा उत्सव है हनुमान जयंती. यह दिन हमें उस महानायक की याद दिलाता है जो भगवान राम के सबसे बड़े भक्त, सेवक और संकटमोचन हैं. उनकी पूजा शक्ति, साहस, बुद्धि और निस्वार्थ सेवा का आशीर्वाद पाने के लिए की जाती है.
क्षेत्रीय भिन्नता का स्पष्टीकरण
अक्सर लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि हनुमान जयंती तो चैत्र महीने की पूर्णिमा को मनाई जाती है. यह बात सही है, भारत के अधिकांश हिस्सों में हनुमान जी का जन्मोत्सव चैत्र पूर्णिमा को ही मनाया जाता है. लेकिन, वाल्मीकि रामायण सहित कई धर्मग्रंथों और उत्तर भारतीय परंपराओं के अनुसार, हनुमान जी का जन्म कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हुआ था. इसलिए, उत्तर भारत के कई राज्यों, विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में, नरक चतुर्दशी के दिन ही हनुमान जयंती मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है.
इस तिथि का एक गहरा प्रतीकात्मक महत्व भी है. दिवाली, यानी कार्तिक अमावस्या, भगवान राम के अयोध्या लौटने का उत्सव है. ठीक उससे एक दिन पहले उनके सबसे बड़े भक्त का जन्मोत्सव मनाना यह दर्शाता है कि राम के आगमन से पहले उनके सेवक का आगमन होता है. यह हनुमान जी की उस भूमिका का सम्मान है, जिसके बिना रावण पर विजय और राम का अयोध्या लौटना संभव नहीं था. इस तरह, यह जयंती दिवाली के उत्सव की एक आध्यात्मिक प्रस्तावना बन जाती है.
अंजनी के लाल की जन्म गाथा
हनुमान जी के जन्म की कथा अद्भुत और दिव्य है. वे वानर राज केसरी और उनकी पत्नी अंजना के पुत्र थे. अंजना पूर्व जन्म में एक अप्सरा थीं, जिन्हें एक श्राप के कारण पृथ्वी पर वानर रूप में जन्म लेना पड़ा था. श्राप से मुक्ति के लिए उन्हें भगवान शिव के अंश को जन्म देना था. उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की. दूसरी ओर, अयोध्या में राजा दशरथ पुत्रेष्टि यज्ञ कर रहे थे, जिसके फलस्वरूप उन्हें देवताओं द्वारा खीर का प्रसाद मिला. उस प्रसाद का एक अंश एक चील उठाकर ले गई और तपस्या में लीन अंजना की हथेली पर गिरा दिया. पवन देव (वायु देवता) के निर्देश पर अंजना ने वह प्रसाद ग्रहण कर लिया, जिसके फलस्वरूप उन्हें भगवान शिव के रुद्रावतार के रूप में हनुमान जी पुत्र रूप में प्राप्त हुए. पवन देव की महत्वपूर्ण भूमिका के कारण ही हनुमान जी को ‘पवनपुत्र’ भी कहा जाता है.
बचपन में वे अत्यंत नटखट और शक्तिशाली थे. एक बार सुबह-सुबह उन्हें भूख लगी और उन्होंने उगते हुए सूर्य को एक पका हुआ लाल फल समझ लिया. वे उसे खाने के लिए आकाश में उड़ गए. यह देखकर देवराज इंद्र घबरा गए और उन्होंने हनुमान पर अपने वज्र से प्रहार किया, जिससे वे मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े. अपने पुत्र की यह दशा देखकर पवन देव ने संसार में वायु का प्रवाह रोक दिया, जिससे सभी प्राणियों का जीवन संकट में पड़ गया. तब सभी देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उन्होंने हनुमान को पुन: जीवित किया. इस घटना के बाद, सभी देवताओं ने हनुमान जी को अनेकों वरदान दिए. ब्रह्मा जी ने उन्हें इच्छानुसार रूप बदलने और लंबी आयु का वरदान दिया, तो इंद्र ने यह वरदान दिया कि उनका शरीर वज्र के समान कठोर होगा. इन वरदानों ने उन्हें अजेय और अमर बना दिया.
हनुमान जयंती की पूजा विधि और परंपराएं
हनुमान जयंती के दिन भक्त पूरी श्रद्धा से उनकी पूजा-अर्चना करते हैं. इस दिन की गई पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है.
- अर्पण (Offerings): हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाना सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. एक कथा के अनुसार, उन्होंने माता सीता को सिंदूर लगाते देख पूछा कि वह ऐसा क्यों करती हैं. सीता जी ने बताया कि यह भगवान राम की लंबी आयु और प्रसन्नता के लिए है. यह सुनकर भोले हनुमान ने अपने पूरे शरीर पर सिंदूर लगा लिया, ताकि उनके प्रभु राम हमेशा प्रसन्न और अमर रहें. तभी से उन्हें सिंदूर चढ़ाने की परंपरा है, जो उनकी अनन्य भक्ति का प्रतीक है. इसके अलावा उन्हें चमेली का तेल, लाल फूल, गुड़-चने और बूंदी या बेसन के लड्डू का भोग लगाया जाता है.
- पाठ (Recitations): इस दिन हनुमान चालीसा का पाठ करना सबसे शक्तिशाली माना जाता है. तुलसीदास द्वारा रचित यह 40 चौपाइयों की स्तुति हनुमान जी के गुणों, पराक्रम और भक्ति का सार है. इसका पाठ करने से हर तरह के भय और संकट दूर होते हैं. इसके साथ ही, रामायण के ‘सुंदरकांड’ अध्याय का पाठ करना भी बेहद शुभ होता है. सुंदरकांड में हनुमान जी की लंका यात्रा, सीता जी की खोज और लंका दहन का विस्तृत वर्णन है, जो उनकी बुद्धि, बल और भक्ति को दर्शाता है.
- व्रत (Fasting): कई भक्त इस दिन सूर्योदय से लेकर शाम की पूजा तक व्रत रखते हैं और पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करके अपना व्रत खोलते हैं.
संकटमोचन का आशीर्वाद: क्यों है उनकी पूजा इतनी फलदायी
हनुमान जी को ‘संकटमोचन’ कहा जाता है, यानी सभी संकटों और बाधाओं को हरने वाले. उनकी पूजा से भक्तों को केवल आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि सांसारिक लाभ भी मिलते हैं. ज्योतिष में, शनि ग्रह की साढ़ेसाती या ढैय्या के बुरे प्रभावों से बचने के लिए हनुमान जी की पूजा को अचूक उपाय माना जाता है. उनकी पूजा करने से व्यक्ति के भीतर साहस, आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प का संचार होता है.
हनुमान जी की पूजा का मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी गहरा है. जब कोई व्यक्ति जीवन की कठिनाइयों से घिरा होता है, तो हनुमान चालीसा या सुंदरकांड का पाठ उसे एक ऐसी शक्ति की याद दिलाता है जिसने असंभव को संभव कर दिखाया था-समुद्र लांघना, पूरा पर्वत उठा लाना. यह पाठ भक्त के मन में यह विश्वास जगाता है कि अगर भक्ति और संकल्प सच्चा हो, तो कोई भी बाधा बड़ी नहीं है. इस प्रकार, हनुमान जी की पूजा केवल एक बाहरी शक्ति से मदद मांगने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि अपने भीतर की ‘हनुमान-शक्ति’ को जगाने का एक माध्यम है.
भाग 3: ज्योतिष और आध्यात्म की दृष्टि में यह महासंयोग
आज, 19 अक्टूबर 2025 को इन दोनों पर्वों का एक ही दिन पड़ना कोई संयोग मात्र नहीं है. यह हिंदू पंचांग की गणितीय सटीकता और ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं के एक गहरे आध्यात्मिक संगम का परिणाम है.
पंचांग का गणित: क्यों और कैसे जुड़े ये दो पर्व
हिंदू कैलेंडर एक चंद्र-सौर पंचांग है, जिसमें तिथियों का निर्धारण चंद्रमा की कलाओं के आधार पर होता है. नरक चतुर्दशी और उत्तर भारतीय परंपरा के अनुसार हनुमान जयंती, दोनों ही कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाई जाती हैं.
आज, 19 अक्टूबर 2025 को, चतुर्दशी तिथि का आरंभ सुबह लगभग 10:58 AM पर हो रहा है और यह अगले दिन, 20 अक्टूबर 2025 को दोपहर 01:16 PM तक रहेगी. हिंदू धर्म में कोई भी पर्व उस दिन मनाया जाता है जिस दिन सूर्योदय के समय वह तिथि मौजूद हो, या फिर उस पर्व से जुड़े विशिष्ट पूजा का समय उस तिथि के भीतर आ रहा हो. नरक चतुर्दशी का मुख्य धार्मिक संस्कार ‘अभ्यंग स्नान’ सूर्योदय से पहले किया जाता है, और ‘यम का दीया’ शाम को जलाया जाता है. हनुमान जयंती की मुख्य पूजा भी शाम या रात में की जाती है. चूंकि चतुर्दशी तिथि आज पूरे दिन और शाम को मौजूद है, इसलिए दोनों ही त्योहारों के प्रमुख अनुष्ठानों को उनकी सही तिथि और सही समय पर करने का अवसर मिल रहा है. यही कारण है कि यह दुर्लभ संयोग बना है.
ऊर्जा का संगम: इस दुर्लभ योग का आध्यात्मिक अर्थ
यह महासंयोग केवल कैलेंडर का एक आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह ऊर्जाओं का एक शक्तिशाली संगम है. इसे समझने के लिए हमें दोनों त्योहारों के मूल भाव को देखना होगा.
- कृष्ण की ऊर्जा (बाहरी बुराई पर विजय): नरक चतुर्दशी भगवान कृष्ण की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है. यह बाहरी दुनिया की सफाई का पर्व है-हमारे घर की गंदगी, समाज की बुराइयां और नरकासुर जैसे राक्षसी तत्वों पर विजय. यह धर्म की स्थापना और बाहरी वातावरण को शुद्ध और सकारात्मक बनाने का प्रतीक है. यह एक वृहद (Macro) स्तर की शुद्धि है.
- हनुमान की ऊर्जा (आंतरिक राक्षसों पर विजय): हनुमान जयंती भगवान हनुमान की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है. यह आंतरिक शुद्धि और शक्ति का पर्व है. हनुमान जी की पूजा हमारे मन के राक्षसों-भय, अहंकार, आलस्य, संदेह और निराशा-पर विजय पाने के लिए की जाती है. वे अनुशासित, एकाग्र और समर्पित आत्मा के प्रतीक हैं. यह एक सूक्ष्म (Micro) स्तर का सशक्तिकरण है.
आज के दिन ये दोनों ऊर्जाएं एक साथ सक्रिय हैं. यह एक ऐसा अनूठा अवसर है जब हम एक ही समय में अपने घर (बाहरी दुनिया) और अपने हृदय (आंतरिक दुनिया) दोनों की सफाई कर सकते हैं. यम का दीया जलाकर हम भौतिक मृत्यु के भय को दूर करते हैं, और हनुमान चालीसा का पाठ करके हम जीवन की चुनौतियों और असफलताओं के भय पर विजय प्राप्त करते हैं. यह एक संपूर्ण आध्यात्मिक ‘डीटॉक्स’ और ‘रिचार्ज’ का दिन है. यह हमें सिखाता है कि सच्ची दिवाली तभी मनती है जब हमारा घर भी साफ हो और हमारा मन भी साफ हो. एक स्वच्छ घर में जब एक शक्तिशाली और भक्तिपूर्ण आत्मा निवास करती है, तभी जीवन में सच्चा प्रकाश आता है.
आज का दिन कैसे मनाएं: एक संपूर्ण मार्गदर्शिका
इस विशेष दिन का पूरा लाभ उठाने के लिए, आप अपने दिन को इस तरह से व्यवस्थित कर सकते हैं ताकि दोनों त्योहारों की परंपराओं का पालन हो सके.
प्रातः काल (ब्रह्म मुहूर्त) – नरक चतुर्दशी के नाम
- अभ्यंग स्नान: सूर्योदय से पहले उठें. पूरे शरीर पर तिल या सरसों के तेल से मालिश करें. इसके बाद घर पर बने उबटन (बेसन, हल्दी, चंदन पाउडर और दूध/गुलाब जल मिलाकर) को शरीर पर लगाएं. कुछ मिनट बाद इसे रगड़कर छुड़ाएं और गर्म पानी से स्नान कर लें.
- स्वच्छ वस्त्र: स्नान के बाद साफ या नए वस्त्र धारण करें.
- घर की सफाई: सुबह की पूजा के बाद घर की सफाई का काम पूरा करें. आज घर का कोना-कोना साफ होना चाहिए, क्योंकि यह नकारात्मक ऊर्जा को बाहर निकालने का प्रतीक है.
दिन का समय – तैयारी और साधना
- प्रसाद की तैयारी: शाम की पूजा के लिए प्रसाद तैयार करें. हनुमान जी के लिए बूंदी के लड्डू, बेसन के लड्डू या गुड़-चने का प्रसाद बना सकते हैं. साथ ही, दिवाली के लिए अन्य पारंपरिक मिठाइयां भी तैयार कर सकते हैं.
- रंगोली: घर के मुख्य द्वार पर सुंदर रंगोली बनाएं. यह सकारात्मक ऊर्जा और देवी लक्ष्मी के स्वागत का प्रतीक है.
- आध्यात्मिक तैयारी: दिन में कुछ समय निकालकर सुंदरकांड का पाठ करें या हनुमान चालीसा का 11 बार जाप करें. इससे शाम की पूजा के लिए एक भक्तिमय वातावरण बनेगा.
सायंकाल – दोनों पर्वों का संगम
शाम का समय इन दोनों त्योहारों के संगम का मुख्य मुहूर्त है. rituals को एक क्रम में करें ताकि किसी भी परंपरा का अनादर न हो।
- पहला चरण (नरक चतुर्दशी): सूर्यास्त के ठीक बाद, सबसे पहले ‘यम का दीया’ जलाएं. एक पुराना मिट्टी का चौमुखी दीया लें, उसमें सरसों का तेल डालें, एक सिक्का रखें और उसे जलाकर घर के मुख्य द्वार के बाहर, दक्षिण दिशा की ओर रख दें. परिवार सहित यमराज को प्रणाम कर सुरक्षा की कामना करें.
- दूसरा चरण (हनुमान जयंती): यम का दीया जलाने के बाद घर के अंदर मंदिर में हनुमान जी की पूजा की तैयारी करें. हनुमान जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें. उन्हें सिंदूर में चमेली का तेल मिलाकर चोला चढ़ाएं या सिंदूर का तिलक लगाएं. लाल फूल, जनेऊ और प्रसाद अर्पित करें.
- तीसरा चरण (आरती और पाठ): घी का दीपक जलाकर हनुमान जी की आरती करें. इसके बाद परिवार के सभी सदस्य मिलकर हनुमान चालीसा का सस्वर पाठ करें.
- चौथा चरण (दीयों की रोशनी): हनुमान जी की पूजा संपन्न होने के बाद, छोटी दिवाली के उत्सव के रूप में घर के अंदर और बाहर अन्य सजावटी दीये जलाएं और पूरे घर को रोशन करें।
आज की समय सारणी
आपकी सुविधा के लिए, आज के दिन की गतिविधियों की एक संक्षिप्त तालिका यहाँ दी गई है:
| समय (Time) | पर्व (Festival) | मुख्य क्रिया (Key Ritual) | उद्देश्य (Purpose) | विशेष ध्यान (Special Note) |
| ब्रह्म मुहूर्त (4:30 AM – 5:30 AM) | नरक चतुर्दशी | अभ्यंग स्नान (उबटन और तेल से स्नान) | शारीरिक और आध्यात्मिक शुद्धि, स्वास्थ्य और सौंदर्य | सूर्योदय से पहले करना सबसे शुभ है. |
| सूर्योदय के बाद (Post-sunrise) | दोनों | घर की सफाई, रंगोली बनाना, प्रसाद की तैयारी | नकारात्मकता को दूर करना और सकारात्मक ऊर्जा का स्वागत | पूरे घर को स्वच्छ और पवित्र वातावरण दें. |
| सायंकाल (Dusk) | नरक चतुर्दशी | यम का दीया जलाना (घर के बाहर, दक्षिण मुखी) | अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति और परिवार की सुरक्षा | यह दीया घर के बाकी दीयों से पहले जलाया जाता है. |
| सायंकाल/रात्रि (Evening/Night) | हनुमान जयंती | हनुमान पूजा, सिंदूर अर्पण, चालीसा/सुंदरकांड पाठ | शक्ति, साहस और भक्ति की प्राप्ति, संकटों से मुक्ति | यह पूजा परिवार के सभी सदस्यों को मिलकर करनी चाहिए. |
| पूजा के बाद (Post-Puja) | छोटी दिवाली | घर में दीये जलाना, उत्सव मनाना | अंधकार पर प्रकाश की विजय का उत्सव | हनुमान जी की आरती के बाद घर को रोशन करें. |
भक्ति और विजय के इस संगम से जीवन की सीख
19 अक्टूबर 2025 का यह दिन सिर्फ एक कैलेंडर की तारीख नहीं है, यह एक गहरा आध्यात्मिक संदेश लेकर आया है. यह हमें याद दिलाता है कि जीवन में विजय पाने के लिए बाहरी और आंतरिक, दोनों मोर्चों पर लड़ना पड़ता है।
असली ‘नरकासुर’ सिर्फ पौराणिक कथाओं में नहीं है; वह हमारे भीतर भी मौजूद है-हमारे अहंकार, हमारे भय, हमारी ईर्ष्या और हमारी नकारात्मक सोच के रूप में. इस भीतरी नरकासुर को मारने के लिए हमें किसी बाहरी शस्त्र की नहीं, बल्कि हनुमान जी जैसी अटूट भक्ति, निस्वार्थ सेवा और दृढ़ संकल्प की ‘शक्ति’ की आवश्यकता है. आज का यह महासंयोग हमें यही सिखा रहा है: अपने जीवन को स्वच्छ और प्रकाशित करने के लिए पहले अपने घर को साफ करो (नरक चतुर्दशी का संदेश) और फिर अपने मन को भक्ति और साहस से मजबूत करो (हनुमान जयंती का संदेश).
तो आइए, आज इस दुर्लभ दिन की शक्तिशाली ऊर्जा का उपयोग करें. अपने घर और अपने मन, दोनों से अंधकार को मिटाएं. ज्ञान के प्रकाश को अज्ञान के अंधकार पर विजय पाने दें, और जीवन की हर चुनौती का सामना पवनपुत्र हनुमान जैसे असीम साहस और विश्वास के साथ करें।
आप सभी को आशा भारती परिवार की तरफ से मंगलमयी हनुमान जयंती और प्रकाशमयी छोटी दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं!





