इस न्यूज को सुनें
|
गिरजा शंकर गुप्ता
अंबेडकर नगर। आम चुनाव इस बार बसपा के लिए चुनौती लेकर आया। शनिवार को हुए मतदान के रुझान में बसपा का आखिरी किला भी ढहता नजर आया। सभी पांच विधानसभा सीटों पर भाजपा व सपा के बीच ही सीधा मुकाबला रहा। सिर्फ जलालपुर में बसपा ने मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास जरूर किया। अब भाजपा या सपा के बीच बाजी किसके हाथ लगी यह सवाल मतदान के अंत तक दिलचस्प बना रहा। यहां लड़ाई काटे की मानी जा रही है।
दलित वोटों में लगी सेंध
◾ बसपा के दलित वोटों में भाजपा व सपा दोनों ने सेंध लगाई है। भाजपा ने जहां कई लाभकारी योजनाओं का लाभ मिलने का हवाला देकर कई गांव के दलित वोटरों को अपने पाले में किया तो वहीं सपा ने भी दलित वोटों में संविधान बचाने का हवाला देकर सेंध लगाने की भरसक कोशिश की। बसपा के लिए काम करने वाले कुछ संगठनों ने इस बार गुपचुप ढंग से दलित युवाओं व जागरूक मतदाताओं को संविधान के नाम पर साधा।
■ अभी तक अंबेडकरनगर जनपद बसपा के गढ़ के तौर पर जाना जाता रहा है। लगभग तीन दशक के चुनाव पर गौर करें तो यहां बसपा का ही दबदबा रहा। 1996 में घनश्यामचंद्र खरवार पहले सांसद बने तो इसके बाद लगातार तीन चुनाव में बसपा प्रमुख मायावती यहां से सांसद चुनी गईं। परिसीमन में हुए चुनाव में 2009 के बाद बसपा के टिकट पर राकेश पांडेय सांसद बने तो 2019 में उनके पुत्र बसपा प्रत्याशी रितेश पांडेय सांसद चुने गए।
■ लोकसभा चुनाव में बसपा को भले ही सफलता मिल गई लेकिन, इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में सभी पांच सीटों पर सपा को जीत मिली। जिला पंचायत अध्यक्ष पद पर भाजपा का कब्जा रहा तो, वहीं ज्यादातर क्षेत्र पंचायतों में भी भाजपा के प्रमुख चुने गए। बसपा के हिस्से सिर्फ लोकसभा सीट बची थी।