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महत्त्वपूर्ण सफलताएँ न तो भाग्य से मिलती हैं और न सस्ती पगडण्डियों के सहारे काल्पनिक उड़ानें उड़ने से मिलती हैं। उसके लिए योजनाबद्ध अनवरत पुरुषार्थ करना पड़ता है। योग्यता बढ़ाना, साधन जुटाना और बिना थके, बिना हिम्मत खोये अनवरत श्रम करते रहना यह तीन आधार ही सफलताओं के उद्गम स्रोत हैं।
यह सच है कि संकल्प के अभाव में शक्ति का कोई महत्त्च नहीं है। उसी प्रकार यह भी सच है कि शक्ति के अभाव में संकल्प भी पूरे नहीं होते। केवल संकल्प करते रहने वाला निरुद्यमी व्यक्ति उस आलसी व्यक्ति की तरह कहा जाएगा जो अपने पास गिरे हुए आम को उठाकर मुँह में भी रखने की कोशिश नहीं करता और इच्छा मात्र से आम का स्वाद ले लेने की आकाँक्षा करता है।
आलस्य से घिरा शरीर और प्रमाद से आच्छादित मन जो भी काम करता है वह आधा-अधूरा, लँगड़ा, काना, कुबड़ा और फूहड़ होता है। मात्रा भी उसकी अति स्वल्प रहती है। उत्साही और स्फूर्तिवान् व्यक्ति जितनी देर में जितना काम बहुत ही सुंदर स्तर का कर लेता है, उसकी तुलना में आलस्य, प्रमादग्रस्त व्यक्ति आधा-चौथाई भी नहीं कर पाता और जो करता है वह भी ऐसा बेतुका होता है कि उससे तो न करना अधिक अच्छा रहता।
युगदृष्टा पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी के लेख से साभार