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👉 डीएफओ ढूंढते रहे लोकेशन और वन भू-माफियाओं ने रातों-रात घटना को दिया अंजाम
👉एसडीएम टांडा ने अवैध हरे पेड़ों की कटान मामलें से पल्ला झाड़ रहे
👉डीएफओ पत्रकारों को लोकेशन के नाम पर गुमराह करते रहे
👉सवाल है कि डेढ़ बीघा प्रतिबंधित हरे पेड़ों के अवैध कटान का जिम्मेदार कौन ?
(आशा भारती नेटवर्क)
अंबेडकर नगर। तहसील टांडा अंतर्गत थाना बसखारी क्षेत्र में टांडा रोड कुटी के पास स्थित लगभग साढ़े चार बीघा विवादित बाग के भूमि का मामला काफी समय से न्यायालय में विवादित चल रहा है जिसमें दोनों पक्ष अपना-अपना ताल ठोक रहे थे।मामला न्यायालय में जाने के बाद पैरवी का सिलसिला जारी था। वहीं विवादित भूमि पर कई भू-माफियाओं का नजर लगी हुई थी। न्यायालय के एक आदेश के तहत एसडीएम टांडा ने भूमि की स्वामित्व एक पक्ष के हक में दे दिया जिस पर बसखारी पुलिस ने भूमि पर कब्जा दिलाने के लिए स्वामित्व पक्ष के साथ विवादित भूमि पर पहुंचकर कब्जा दिलाया।
सूत्रों की माने तो यह पूरा खेल राजनीति के प्रभाव से ओत-प्रोत बताया जा रहा है जिसमें सत्ता पक्ष का एक स्थानीय प्रभावशाली नेता ने पूरा खेल रचा।और प्रशासनिक अधिकारी भी सत्ता पक्ष नेता प्रभावित होकर काठ का उल्लू बनकर सारा खेल रच डाला।जिसका नतीजा भूमि पर स्वामित्व के साथ-साथ सत्ता पक्ष के नेता से प्रभावित जिम्मेदारान अधिकारियों की मिली-जुली भगत से बाग में लगे प्रतिबंधित हरे पेड़ों को बेतहाशा काटने के काम को अंजाम देना शुरू कर दिया।जिसमें आम, बरगद ,पीपल और शीशम के लहलहाते हरे पेड़ को पूरे दिन और फिर पूरी रात अंधाधुन काटा जा रहा था और वही ट्रैक्टर ट्राली से ठिकाने भी लगाया जा रहा था।
क्षेत्र में चर्चा आम हो गया कि यह तो पूरी तरह से सीना जोरी हो रह है और जिसमें सत्ता पक्ष के एक नेता का भी नाम लेकर लोगों ने काफी फजीहत का चर्चा आम हो गया है।आखिरकार इतने बड़े पैमाने पर प्रतिबंध हरे पेड़ों की कटान किसके आदेश पर किया गया है मामला मीडिया के संज्ञान में आते ही एसडीएम टांडा और डीएफओ के हाथ पांव फूलने लगे पत्रकारों ने जब इस मामले में एसडीएम टांडा से जानकारी प्राप्त की गई तो उन्होंने बताया कि हमने विवाद को हल करते हुए एक पक्ष को स्वामित्व का कब्ज दिया है न कि प्रतिबंधित हरे पेड़ों को काटने का आदेश दिया है। स्वामित्व के भूमि पर भू-स्वामी अपना कोई भी कार्य करें इससे प्रशासन से कोई मतलब नहीं है, रही बात प्रतिबंधित हरे पेड़ों की तो इसकी जिम्मेदार वन विभाग और डीएफओ हैं उनसे पूछे। जब प्रतिबंधित हरे पेड़ों की बेतहाशा कटान के बारे में डीएफओ से जानकारी प्राप्त की गई तो पहले एक सिरे से उन्होंने मामले से इनकार किया फिर कहा कि हमें लोकेशन बताइए हम वन रेंजर और बसखारी पुलिस को तुरंत भेजते हैं जितने भी पत्रकार बंधुओं ने जानकारी प्राप्त करना चाहा तो हर किसी को गुमराह करने वाला एक ही सवाल करते रहे हमें लोकेशन बताइए जबकि साहब को सब कुछ साफ-साफ पता है सब कुछ जानकारी में यार न्यारा हो रहा है लेकिन पत्रकार बंधुओ को गुमराह करने से बाज नहीं आ रहे थे डीएफओ के इसी घटियापन बयान का फायदा वन और भू-माफियाओं ने उठाते हुए रातों-रात प्रतिबंधित हरे पेड़ों के बेतहाशा कटान करते हुए लगभग डेढ़ बीघा बाग को नश्ते-नाबूत कर दिया और मीडिया के संज्ञान में आने से हरकत में आए बन माफिया और भू-माफियाओं ने सत्ता पक्ष नेता के इशारे पर रातों-रात कटी हुई लकडियों को ठिकाना बदलकर हजम करने के फिराक में लग गए और अगले दिन जब डीएफओ से जानकारी करने का प्रयास पत्रकार बंधुओ ने किया कि मामले में कार्रवाई हुई या नहीं तो उन्होंने फिर वही सवाल लोकेशन बताओ?कहां जा रहा है ?कौन ले जा रहा है?कहां कट रहा है?कहां रखा जा रहा है? इस तरह के बेहूदे सवालों से पत्रकार बंधुओ को गुमराह करते रहें जबकि कटान कर प्रतिबंधित हरे पेड़ों को ट्रैक्टर टालिया से ले जाते हुए वीडियो फोटो सबूत के तौर पर मीडिया के पास मौजूद है,के बावजूद भी एड़ी से छोटी का जोर डीएफओ लगाते रहे सवाल है कि डेढ़ बीघा जब बाग को बेतहाशा काट डाला गया, इसका जिम्मेदार कौन ?
एसडीएम टांडा या फिर डीएफओ या फिर दोनों जिम्मेदारान अधिकारी हैं ।
मजे की बात है कि स्थानीय प्रशासन भी कान में तेल डालकर सब कुछ अपने नंगी आंखों से देख रहा लेकिन उसके कानों में जूं तक नहीं रेंगा। स्थानीय प्रशासन को लेकर बड़े सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिरकार क्षेत्र में प्रतिबंधित हरे पेड़ों की बेतहाशा कटान किस अधिकारी के आदेश पर किया गया ।
मानो कि जिले के अंदर जिम्मेदारान विभाग के अधिकारियों ने अपने आंख, नाक कान और मुंह सब कुछ बंद कर रखा हो और वन व भू-माफियाओं को खुली छूट दे रखी हो।
सूत्र बताते हैं कि मीडिया के दखल के बाद हरकत में आए डीएफओ ने खाना पूर्ति करने के लिए काटे गए पेड़ों के बाग में वन रैंजर व पुलिस फोर्स के साथ कटान को रोकने के लिए पहुंची थी किंतु सवाल तो सबसे बड़ा यह है कि लगभग डेढ़ बीघा बाग में बेतहाशा प्रतिबंधित हरे पेड़ों को काटकर ठिकाने लगाने का काम जो किया गया है इसका जिम्मेदार कौन है?क्योंकि एक तरफ एसडीएम अपनी साख बचाने के लिए पल्ला झाड़ते हुए नजर आ रहे हैं तो वहीं डीएफओ की जिम्मेदारी बता रहे हैं। बौखलाये डीएफओ पत्रकार बंधुओ से अनाप-शनाप बातें बयान में कर रहे हैं किसी को गुंडा माफिया बना रहे हैं तो किसी पत्रकार बंधु से कहते हैं कि तुम्हें जो करना हो कर लो आखिरकार सत्ता पक्ष के इस नेता का कितना बड़ा प्रभाव है कि अधिकारी भी कार्यवाही के लिए अपनी कलम चलने से कतरा रहे हैं और कोई भी जहमत उठाने को तैयार नहीं। जबकि केंद्र सरकार से लेकर प्रदेश की सरकार करोड़ों की संख्या में पूरे देश के कोने- कोने में वृक्षारोपण का कार्यक्रम भारी भरकम बजट खर्च करके करती है जिससे पर्यावरण संतुलित रहे, जीवन सुचारू से चलता रहे, ऑक्सीजन की कमी न हो,बीमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती रहे और हरियाली इस कदर अपना पांव पसारे की चारों तरफ खुशियां ही खुशियां हो किंतु केंद्र और प्रदेश की सरकार के अरमानों पर पानी फेरने वाले सत्ता पक्ष के इस नेता और अपनी कर्तव्यों से विमुख जिम्मेदारान अधिकारियों पर कार्रवाई का हंटर कौन चलाएगा।
मामला तूल पड़ता जा रहा है कि पूरे जनपद में चर्चा का विषय आम हो चुका है अब लोगों को इंतजार है तो कार्रवाई की और बेतहाशा काटे गए डेढ बीघा प्रतिबंधित हरे पेड़ों का जिम्मेदार कौन है जनता को जवाब का इंतजार है। जबकि वहीं भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ता स्वामीनाथ यादव ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि बेतहाशा प्रतिबंधित हरे पेड़ों का नरसंहार करने वालों पर सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए और इस घटिया कृत्य का जवाब देही तय होनी ही चाहिए। क्योंकि उत्तर प्रदेश भाजपा सरकार की किरकिरी हो रही है और सरकार की साफ और स्वच्छ छवि को धूमिल करने में एसडीएम टांडा, डीएफओ और स्थानीय प्रशासन ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ा।