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भारत कारगिल संघर्ष की 25वीं वर्षगांठ मना रहा है। यह देश के सैन्य इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। भारत और पाकिस्तान के बीच हुए इस युद्ध में भारत ने जहां दुनिया के सामने अपनी सैन्य शक्ति का वर्चस्व स्थापित किया, तो वही हमें कई वीर जवानों को गंवाना भी पड़ा।
वीरता के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराने वाले बहादुर लोगों में कैप्टन सौरभ कालिया भी शामिल हैं। जिनका बलिदान भारतीय सशस्त्र बलों के अटूट साहस और समर्पण का प्रतीक है। वह सौरभ कालिया ही थे, जिन्होंने सबसे पहले कारगिल में पाक के नापाक इरादों की जानकारी भारतीय सेना को दी थी।
भारतीय सेना की 4 जाट रेजिमेंट के महानायक कैप्टन सौरभ कालिया 5 मई, 1999 की रात पांच साथियों (नरेश सिंह, भीखा राम, बनवारी लाल, मूला राम और अर्जुन राम) के साथ बजरंग पोस्ट में पेट्रोलिंग कर रहे थे। उन्हें घुसपैठ की जानकारी मिली थी। लेकिन घात लगाकर बैठे पाकिस्तानी घुसपैठियों ने उन पर हमला कर दिया। जिसमें वह और उनके साथी घायल हो गए। जिसके बाद पाकिस्तानी उन्हें पकड़कर पाकिस्तान ले गए। जहां उन्हें और उनके साथियों को 22 दिनों तक दिल दहलाने वाली यातनाएं दी गईं। तीन हफ्ते बाद उनका पार्थिव शरीर सेना का मिला था।
पाकिस्तानी सेनी की दरिंदगी-
कैप्टन सौरभ और उनके साथी 15 मई 1999 से 7 जून तक पाकिस्तान की कैद में रहे। इस दौरान उनके साथ दरिंगदी की सारी हदें पर कर दी गई। जिसने भी उनके पार्थिव शरीर देखे उनकी रूह कांप गई। इन सभी बहादुर जवानों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि कैप्टन सौरभ और उनके साथियों को पाकिस्तानी सैनिकों ने सिगरेट से दागा गया, कान में गर्म सलाखें डाली थी, उनकी आंखें निकाल ली, दांत तोड़ डाले, शरीर की सारी हड्डियां तोड़ डाली थी।
यहां तक कि प्राइवेट पार्ट भी काट डाले। बाद में सौरभ कालिया के सिर में गोली मार दी। बताया जाता है कि सौरभ के चेहरे पर सिर्फ आईब्रो बचीं थी। उनका चेहरा बुरी तरह से कुचला हुआ था।
मेडिकल में अच्छा कॉलेज नहीं मिला तो सेना में हो गए शामिल
मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के पालमपुर के रहने वाले सौरभ पहले डॉक्टर बनना चाहते थे। लेकिन इंट्रेस में नंबर कम आने के चलते उनका सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिला नहीं हो पाया। जिसके बाद उन्होंने हिमाचल प्रदेश एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी में दाखिला ले लिया। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने सीडीएस का एग्जाम पास कर लिया। 1997 में इंडियन मिलिट्री एकेडमी ज्वाइन कर ली।
मां को दे गए थे ब्लैंक चेक…..
12 दिसंबर 1998 को आईएमए की पासिंग आउट परेड के बाद सौरभ पहली बार घर आए थे। 15 दिन की छुट्टियां बिताने के बाद सौरभ बरेली रवाना हुए। जहां से उन्हें जम्मू कश्मीर में 4-जाट बटालियन ज्वाइन करने से पहले जाट रेजिमेंटल सेंटर में रिपोर्ट करना था। जाने से पहले सौरभ अपनी को ब्लैंक चेक बुक दे गए थे। जाते वक्त सौरभ ने अपनी मां से कहा था कि, अब मैं कमाने लगा हूं।तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। जब भी पैसों की जरूरत हो मेरे अकाउंट से पैसे निकाल लेना। लेकिन दुर्भाग्य देखिए सौरभ की पहली सैलरी उनके अकाउंट में आती उससे पहले ही वह भारत मां के लिए कुर्बान हो गए।
आखिरी बात…..
बरेली जाट रेजिमेंटल सेंटर को रिपोर्ट करने के बाद सौरभ को जम्मू कश्मीर भेज दिया गया। जिसके बाद 30 अप्रैल 1999 को सौरभ ने अपने छोटे भाई वैभव को उनके जन्मदिन पर फोन कॉल किया। उन्हें बधाई देने के बाद सौरभ ने बताया कि, उनकी ड्यूटी कुछ दिनों के लिए फॉरवर्ड पोस्ट पर होगी। जिसके चलते बात नहीं हो पाएगी। इसके बाद मां से बात करते हुए सौरभ ने कहा कि, मेरी चिंता मत करना, मैं 29 जून को अपने जन्मदिन पर घर वापस आऊंगा। यही उनकी परिवार से आखिरी बातचीत थी। जिसके कुछ दिनों बाद पाकिस्तानी घुसपैठिओं ने उन्हें बंधक बना लिया।