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वाराणसी। ज्ञानवापी के ASI सर्वे की सारी रूकावटें खत्म हो गई हैं. ज्ञानवापी मंदिर है या मस्जिद इसके प्रमाण अब ASI वैज्ञानिक विधि से तलाशना शुरू कर दिया है. लेकिन इतिहासकारों के अनुसार ज्ञानवापी की क्या कहानी है?
कैसे पड़ा ज्ञानवापी का नाम और कब-कब इसे तोड़ा गया, इसका पूरा ब्यौरा बीएचयू के इतिहासकार ने इतिहास के पन्नों से निकल कर सामने रखा.
BHU के इतिहासकार प्रो पीबी राणा ने बताया कि ज्ञानवापी सर्वे के दौरान जो अंदर से वस्तुएं मिली उनका जिक्र इतिहास में होता है, लेकिन यदि हम पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यताओं को देखें तो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में शिव के यहां आने के तथ्य मिलते हैं और जब शिव काशी में आए तो उनका रूप ईशानेश्वर के रूप में था. उसी समय ज्ञानवापी कूप की स्थापना हुई. उसके बाद ह्वेन सांग ने भी अपनी यात्रा के दौरान वाराणसी के अब मुक्तेश्वर क्षेत्र का वर्णन किया है और उसके बाद अलग-अलग राजाओं के शासनकाल में अलग-अलग इतिहासकारों ने ज्ञानवापी का वर्णन किया है.
उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक दृष्टि से जो हमारा सर्वे है उसमें यह पता चलता है कि मंदिर उसी स्थान पर था जहां आज मस्दिज बताई जा रही है. 1420 के लगभग वह पोर्शन के रूप में बन गया था. तुगलक ने 1450 के आस-पास उसे गिरा दिया. पहले रजिया का मंदिर बना, 1426 और फिर 1440-45 में इस मंदिर की मरम्मत की गई. 1556 में अकबर के कार्यकाल में पूरा मंदिर बना था, जिसे 1669 में गिरवा दिया गया था. 1669 में ही मस्जिद बनाई गई थी. इससे पहले भी कई प्रयास हुए थे, लेकिन यहां पर हुए आंदोलन के चलते नहीं गिराया जा सका था.
उन्होंने बताया कि साल 1936 में वह जगह बंद की गई और 1952 में एक्ट पास हुआ था. जहां तक श्रृंगार गौरी की बात होती है तो वहां पर कोई मूर्ति नहीं बल्कि चिह्न था. वह अभी भी पीछे की दीवार पर पूरा का पूरा दिखाई देता है. कहा गया कि साल में सिर्फ पूजा एक बार की जाती थी. ये बात भी किसी ने फैलाई थी. इस परिसर का सर्वे 1822 में हुआ और 1832 में मैप तैयार हुआ. वह पहला मैप था जो पूरी डिजाइन की बात करता है. उसके आधार पर 1937 में मुकदमा दायर हुआ उसमें सारा डिजाइन छपा हुआ था. इससे सिद्ध हो रहा है कि पूरा का पूरा मंदिर था.
वाराणसी कमीशन की सर्वे रिपोर्ट में जो चीजें मिली हैं. इतिहासकार कहते हैं कि वह इसे मंदिर साबित करते हैं. सर्वे में मिली चीजों में मस्जिद के भीतर हाथी का सूंड, त्रिशूल, पान, घंटियां शामिल हैं. इसके साथ ही मुख्य गुंबद के नीचे स्वास्तिक का चिह्न मिला है. मस्जिद के पहले गेट के पास तीन डमरू के चिह्न मिले हैं. उत्तर-पश्चिम दिशा में 15-15 फीट का एक तहखाना दिखा है. उसके ऊपर मलबा पड़ा हुआ था. उन मलबों के पत्थरों पर मंदिर जैसी आकृतियां दिखी हैं. इसके साथ ही बाहर विराजमान नंदी और अंदर मिले कुंड के बीच की दूरी 83 फीट 3 इंच है. इसी कुंड में एक शिवलिंग की आकृति का पत्थर भी है, जिसे स्थापित शिवलिंग बताया जा रहा है. अब सर्वे हो रहा है और अब कोर्ट ने ASI को चार सप्ताह का मौका भी दे दिया है. अगर जो बातें इतिहास में दर्ज हैं, उसके मुताबिक ज्ञानवापी के सर्वे में मन्दिर के साक्ष्य मिलने के अवसर प्रबल दिखाई देते हैं.